तुम 6 दिन काम करते हो, सिर्फ 1 दिन आनंद लेने के लिए।
तुम 8 घंटे काम करते हो, लेकिन खाना सिर्फ 15 मिनट में खाते हो।
तुम 8 घंटे काम करते हो, लेकिन सोते सिर्फ 5 घंटे हो।
तुम पूरे साल काम करते हो, बस एक या दो हफ्ते की छुट्टी के लिए।
तुम पूरी ज़िंदगी काम करते हो, बस बुढ़ापे में रिटायर होने के लिए।
और अंत में, बस अपनी आखिरी सांसों को टकटकी लगाए देखते रह जाते हो।
समय के साथ तुम्हें एहसास होता है कि ज़िंदगी तुम्हारी अपनी ही व्यंग्यात्मक छवि बनकर रह जाती है,
जहां तुम अपने ही विस्मरण का अभ्यास करते रहते हो।
हम भौतिक और सामाजिक दासता के इतने आदी हो चुके हैं कि अब हमें अपनी बेड़ियां दिखाई ही नहीं देतीं...
ज़िंदगी एक छोटा सा सफर है, इसमें भगवान की भक्ति करो "