साध समाज में भंडारे का आयोजन

साध समाज में भंडारे का आयोजन मालिक की दया और हुकुम से होता है, ताकि आत्मा (ब्रह्म ) माया के बंधनों से मुक्त होकर समर्पण भाव में हो सके। यह सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि आत्मा को मालिक के और करीब लाने का एक जरिया है। भंडारे में जो भी जिस भाव से आता है, मालिक उसे उसी के अनुसार सौंपते हैं—चाहे वह धन-संपत्ति हो, शरीर का स्वास्थ्य हो या मालिक से मिलने की गहरी तड़प। यहाँ दूर-दूर से साध संगत आती है, सत्संग होता है, और ज्ञान-चर्चा के जरिए आत्मा को प्रेरणा मिलती है, जिससे मालिक से जुड़ने की चाह और मजबूत होती है। भंडारे में सेवा (टहल) भी एक बड़ी नियामत मानी जाती है, जिसे मालिक ही सौंपते हैं। इसलिए जो भी सेवा मिले, उसे पूरे प्रेम और समर्पण से करना चाहिए, बिना किसी भेदभाव के, तभी सेवा का असली फल मिलता है। भंडारे में इतनी आध्यात्मिक ऊर्जा होती है कि वह सालभर आत्मा के भीतर एक ताकत देती है और मालिक से मिलने की तड़प को और गहरा कर देती है। साध संगत बहुत प्यारी होती है, क्योंकि यह मालिक की प्यारी  है। भंडारे में मालिक की दया से न केवल शरीर को भोजन मिलता है, बल्कि आत्मा को भी सत्तज्ञान का आहार प्राप्त होता है। यही वजह है कि कहा गया है—"भंडारे में भाड़ा (आहार) दीजे, आत्म ज्ञान पोखना कीजै," यानी शरीर और आत्मा दोनों को पोषण मिले, ताकि आत्मा मालिक की ओर बढ़ सके।

मालिक🙏 की मेहर हर पल सब पर हो रही है 🌹