भावार्थ ।
जब तक शरीर की आशाएं और आशिकत है। तब तक मन को नहीं मिटा सकता। जब तक मन की कुर्ती विचार ना बदले। इतने तक मन भवसागर में जन्म मरण के अंदर रहेगा। इस मनुष्य जन्म सफल करने के लिए इस शरीर का मोह । मन की वासना मिटा कर। मन की इच्छाओं को त्याग कर। निर्भय होकर सत्संग रूपी मैदान में रहे। तभी मनुष्य जन्म सफल है।
चाहें गंगा किनारे घर करो चाहें पियो निर्मल नीर ।
मुक्ति नहीं सतनाम बिना कह गये साहिब कबीर ।।