*ज्यों* *तिल* *माहि* *तेल* *है* , *ज्यों* *चकमक* *में* *आग* ।
*तेरा* *साईं* *तुझ* *ही* *में* *है* , *जाग* *सके* *तो* *जाग* ।
*अर्थ* *सहित* *व्याख्याः* कबीर दास जी कहते हैं जैसे तिल के अंदर तेल होता है, और आग के अंदर रौशनी होती है ठीक वैसे ही हमारा ईश्वर हमारे अंदर ही विद्धमान है, अगर ढूंढ सको तो ढूढ लो।
*जहाँ* *दया* *तहा* *धर्म* *है* , *जहाँ* *लोभ* *वहां* *पाप* ।
*जहाँ* *क्रोध* *तहा* *काल* *है* , *जहाँ* *क्षमा* *वहां* *आप* ।
*अर्थ* *सहित* *व्याख्याः* कबीर दास जी कहते हैं कि जहाँ दया है वहीं धर्म है और जहाँ लोभ है वहां पाप है, और जहाँ क्रोध है वहां सर्वनाश है और जहाँ क्षमा है वहाँ ईश्वर का वास होता है।
*सत* *अवगत* *सतनाम*