संसार में तो आकर्षण और विकर्षण (रुचि - अरुचि) दोनों होते हैं, पर सत् करतार में आकर्षण - ही - आकर्षण होता है, विकर्षण होता ही नहीं, यदि होता है तो वास्तव में आकर्षण हुआ ही नहीं ।
इस मनुष्य प्राणी का शरीर अपने निज माँ - बाप का बेटा है, पर यह मनुष्य प्राणी स्वयं में सत् करतार का बेटा है । हम सत् करतार के हैं - यह बात हम मनुष्य प्राणी यद्यपि अगर मान ले तो निश्चित ही हमारा सत्संग सफल हो गया ।