भावार्थ ।
हमें यहां सदैव नहीं रहना है। जीवन और मृत्यु का कोई भरोसा नहीं। यह देही ना जाने कब हाथ से चली जाए। इसलिए कुछ दिन जीवन के लिए। सभी से प्रेम से बोल और
दिल के अंदर नरम शील विचार से रह।
मैं समरथ के आसरे , दम कदम करतार । गफलत मेरी दूर करो, खड़ा रहूं दरबार।