मालिक को जितना अपने पास मानते है, उतनी ही हमारी भगत मार्ग में इस्थिति है , जितना दूर मानते है उतनी ही भगत मार्ग मे दूरी है !!
यदि हमें मालिक को अपने घट में विश्वाश के साथ विराजमान मान लिया तो, फिर करने को कुछ बचा ही नहीं, फिर तो केवल प्रेम ही प्रेम रहेगा, अपने अंदर भी और बाहर भी, बस भगत मार्ग पूरा हो गया , केवल प्रेम ही प्रेम रहेगा!!
जिन मालिक जाना पास ही फिर क्या चाहीए और !!