जैसे बालक से जवान और जवान से बूढ़ा होने में कोई कष्ट नहीं होता, ऐसे ही मृत्यु के समय भी वास्तव में कष्ट नहीं होता !
कष्ट उसी को होता है, जिसमें यह चाहना है कि मैं जीता रहूँ !
तात्पर्य यह है कि जिसका शरीर में मोह है, उसी को मृत्यु के समय हजारों बिच्छू एक साथ काटने के समान कष्ट होता है !
शरीर में जितना मोह, आसक्ति, ममता होगी तथा जीने की चाहना जितनी अधिक होगी, उतना ही शरीर छूटने पर अधिक दुःख होगा !
स्वाति की बूंदें
भोगों की चाहना मनुष्य को सत् करतार में लगने नहीं देती । भोगों की चाहना अपने से दूर न हो तो सत् करतार से प्रार्थना करो ।