एक प्रेम होता है, एक आसक्ति होती है । प्रेम उद्धार करने वाला है, आसक्ति पतन करने वाली है । परन्तु प्रेम जल्दी समझ में नहीं आता । लोग स्त्री - पुरुष में प्रेम मानते हैं, पर वह महान् आसक्ति है, प्रेम नहीं है । उसमें प्रेम का नामो निशान ही नहीं है ! प्रेम में देना - ही - देना होता है और आसक्ति में लेना - ही - लेना होता है । आसक्ति अपने
सुख के लिये होती है ।
भला बनने के लिये हमें कुछ करने की जरूरत नहीं है । केवल बुराई सर्वथा छोड़ दें तो हम भले हो जायेंगे ।