संसार में संशयों का आसार निश्चित तौर पर हैं।
संसार त्यागने का आशय यही हैं कि संसारिक जीवन की मर्यादाओं को कुशलतापूर्वक निभाते हुए संसार से पृथक पहचान पाना।
सच्चे सतगुरु के अनमोल शब्दों को पूर्ण रुप से लखने परखने से हीं मुक्ति के मार्ग की राह सहज और आसान हैं।
गुरूजी की उपस्थिति मुक्ति के मार्ग में अवश्य हैं। इस राह पर किसी भी भांति की बाधा नहीं हैं।
बाधाएं मात्र कलयुगी करतूत में हीं हैं। यह प्राणी बाधित राहों का सर्वथा त्याग करने की विनती अरदास निरन्तर करें तो एक हीं पल में गुरूजी बंधन मुक्त कर देते हैं।
दृढ़तापूर्वक पूर्ण सत्संग हीं आवश्यक साधन हैं।
सत्संग पूर्ण हो गया तो आगे से आगे कपाट खुले पायेंगे।
सभी भांति की जानकारी सभी प्यारी साध संगत निश्चित तौर पर हैं।
इस भांति के सामाजिक समूह स्थापित होने के उपरांत अनेक भांति के लेखन पाठन होते हैं।
अधिकांश प्राणी का काफी समय भी वर्तमान में इन संसाधनों में हीं व्यतीत होता हैं।
किसी समय खेतों में या उस समय के किसी और कार्य क्लापों में समय व्यतीत होता था तो उन्हीं से सम्बंधित दृष्टांत से समझाया जाता था।
सदैव हम सभी प्राणी मात्र का मूल भाव गुरुजी के गुणों कों सहज भाषा में लिखने का हीं बना रहें।
आराधना और साधना दोनों हीं संसारिक बंधनों से मुक्ति के अति उपयोगी साधन हैं।
प्राणी मात्र द्वारा दोनों हीं साधन प्रत्यक्ष कृतज्ञता द्वारा हीं साध पाना संभव है।
।सतनाम।