अंबर बरसै धरती भीजै, यहु जाने सब कोई ।
धरती बरसै अंबर भीजै, बूझै बिरला कोई ।।
गावन हारा कदे न गावै, अनबोल्या नित गावै ।
नटवर पेखि पेखना पेखै, अनहद बेन बजावै ।।
कहनी रहनी निज तत जानै, यहु सब अकथ कहानी ।
धरती उलटि आकासहि ग्रासै, यहु पुरिसा की बाणी ।।
बाज पियालै अमृत सौख्या, नदी नीर भरि राख्या ।
कहै कबीर ते बिरला जोगी, धरणि महारस चाख्या ।।