।।सहंस भरम से साध न होई।।
सहंस भरमों को मानने से ब्रह्म (साध) की अवस्था नहीं पायेंगे।
संसार से मुक्ति साधनाओं से युक्त साध की हैं।
बाह्य साधनाओं का उपयोग मात्र आंतरिकता में प्रवेश के लिए हीं हैं।
कानजी संत की परतीत :-
।।जोगीदास शरण सत आया सहंस तजाऔर पथर बगाया।।
।।राम किशन किरतम कर जाना
सेते वस्तर पहिरा बाना।।
कानजी संत गुरु की शरण में आ गये सहंस भरमों की मानता का त्याग किया।
राम और किशन को सृष्टि कर्ता का किया हुआ (किरतम)माना और हुकम केअनुसार श्वेत वस्त्र धारण कर लिए।
देह की किसी भी भांति की मुंह,हाथ,नाखुन,बाल ईत्यादि की रंगत करना गुरूजी की सीख में सर्वथा वर्जनीय हैं।
संसारिक जीवन के अंतर्गत बिंदी,सिन्दूर या किसी भी भांति के श्रृंगार साधनों की उपयोगिता उचित नहीं।
सतगुरू साहिब की महर से सतनामी साध मते में सहज साधारण भोजन,वस्त्र इत्यादि संतों द्वारा पूर्णतया प्रमाणित हैं।
प्राणी मात्र के हित के लिए भी सादा खान-पान हीं पूर्णतया अपेक्षित हैं।
।सतनाम।