हे मेरे मालिक दाता । मै आपको भूलूँ नहीं । यह साधक ब्रह्म प्राणी सत् करतार का है और सत् करतार इसके अपने है ।
सच्ची मौज मुकत की अनुभूति के आभास प्राप्त संतो के संग से ही आदमी को होश आता है अन्यथा भोग और संग्रह में फँसा रहता है । सत्संग से बहुत लाभ होता है । सत्संग में रहना क्रूज शिप में रहने जैसा है । फिर स्वयं तैरना नहीं पड़ता । सन्तों का विलक्षण खजाना आप से आप मिल जाता है ।
*रहस्य मयी वार्ता*
सत् करतार से पैदा हुई सृष्टि सत् करतार का स्वरूप ही है, पर जगत् रूप से जगत् की सृष्टि जीव कृत है । *मैं* के कारण जगत् जगत् रूप से दीखता है । अतः *मैं* के मिटने पर लोक मिटते नहीं, प्रत्युत सब कुछ सत् करतार के स्वरुप में तब्दील हो जाता है । ... मैं के कारण ही जगत्, जीव और सत् करतार - ये तीन दीखते हैं, अन्यथा तीनों एक ही हैं ।