संजीवनी

साधक - संजीवनी

 आध्यात्मिक धर्म ग्रन्थ निषिद्ध भोग तो सर्वथा त्याज्य हैं ही, आध्यात्मिक धर्म ग्रन्थ विहित भोग भी सत् करतार की आंतरिक अनुभूति में बाधक होने से त्याज्य ही हैं । कारण कि जड़ता के सम्बन्ध के बिना भोग नहीं होता, जब कि सत् करतार की आंतरिक अनुभूति के लिये जड़ता से सम्बन्ध - विच्छेद करना आवश्यक है ।