साधक को अभ्यास करना चाहिये

किसी के समझ में आ जाय तो यह बहुत ऊँचे दर्जे की चीज है *सत् सर्वमिति* । मोक्ष अनुभूति रस चखे हुए संत महात्मा तो इस स्वभाव के सिद्ध बुद्धि है । 

 साधक को अभ्यास करना चाहिये कि यह जो कुछ है सब सत् करतार का ही स्वरुप है । पहले वाणी के द्वारा अभ्यास करना चाहिये, फिर मन पकड़ लेगा, फिर बुद्धि में निश्चय हो जायगा, फिर आत्मगत हो जायगा । 

 यह सारा - का - सारा ब्रह्माण्ड सत् करतार का स्वरूप है । एक ही सत् करतार अनेक रूप में दीख रहे हैं । इसलिये जिसकी सब में गुर मुखी बुद्धि हो जाय, उसने तो अपना जीवन सफल बना लिया, उसको हर वक्त शान्ति - आनन्द रहेगा, उसको जीते - जी सत् करतार की अनुभूति हो जायगी, अन्यथा अन्त समय में तो हो ही जायगी । जिसकी सब में गुर मुखी बुद्धि हो गयी है, उसका ध्यान तो अपने - आप ही होने लगेगा, फिर उसका ध्यान छूट ही नहीं सकता । 

 संस्मरण - एक बार मोक्ष अनुभूति रस चखे हुए संत महात्मा वृक्ष के नीचे सत्संग करते समय बोले की तुम सब लोग मेरे पर कृपा करके एक बात का तो निश्चय कर लो कि अब तुम्हारा पुनर्जन्म नहीं होगा । जो भी भाई - बहिन ऐसा निश्चय कर लेगा, उसका फिर और जन्म नहीं होगा । पर कोई संदेह करेगा कि क्या पता और जन्म होगा या नहीं तो उसके बारे में संदेह है ।