उसी की वस्तु उसी को देना त्याग है

स्वाति की बूंदें

उसी की वस्तु उसी को देना त्याग है, दान नहीं । बाहर से देखें तो दरिद्र और त्यागी - दोनों की एक अवस्था है । परंतु बाहर से एक अवस्था होने पर भी भीतर से दरिद्र दु:खी रहता है और त्यागी सुखी । त्यागी के पास जाने से लोगों को सुख मिलता है ।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ

 कदापि अगर हम मनुष्य प्राणी अशुद्ध ना करे तो चित्त अपने - आप शुद्ध हो जायगा । चीज तो पहले से ही शुद्ध है । जंगल शुद्ध रहता है, पर जहाँ मनुष्य जाते हैं, वहाँ गन्दगी कर देते हैं । प्रकृति स्वतः शुद्ध कर रही है प्रत्युत हम मनुष्य प्राणियों को यह उपयुक्त है कि कम से कम कृपा रूपक ही मान कर हम उसे अशुद्ध ना करे !