संसार और मोक्ष दोनो ही मुझमें उठती तरंगे हैं

*मुझे* *मालूम* *है* । *हम* *सबको* *मालूम* *है*

  कि हमें क्या करना चाहिये और क्या नही करना चाहिये । लेकिन हम वही करते हैं जो नही करना चाहिये और वे काम नही करते जो करना चाहिये । यह इसलिये होता है क्योंकि हम हमेशा बेहोशी या नींद में रहते हैं। बात यह सच है हम माने या न माने । अहंकारी मानने को राजी न होगा और जो अहंकारी न होगा वह यह बात मन्जूर कर लेगा ।

संसार और मोक्ष दोनो ही मुझमें उठती तरंगे हैं । अब चुनाव करने का काम हमारा हैं । मोक्ष चाहिये या संसार ।

सेवा करो, पर सम्बन्ध किसी से मत जोड़ो । सम्बन्ध पतन करने वाला है । एक सत् करतार के सिवाय किसी से सम्बन्ध मत जोड़ो ।

साधक - संजीवनी* 

 सन्त, भक्त आदि के दर्शन, सम्भाषण, चिन्तन आदि का माहात्म्य इस मृत्यु लोक के मनुष्यों के लिये ही है ।