युगों-युगों से एक हीं कर्ता का साधक

।मालिक की अपार दया महर।

युगों-युगों से एक हीं कर्ता का साधक(हुकमी) प्राणी सदैव तन के त्याग की आस करता हैं।


सृष्टिकर्ता से सदैव ऐसे किसब की सामर्थ्य पाने की विनती अरदास करता हैं कि कभी चौरासी में नहीं आवें।

प्राणी मात्र को सदैव सामर्थ्यवान हीं बनाया हैं मगर भूलवश सामर्थ्यता खोने के कारण पुनः सतगुरु ने सीख देकर अनंत उपकार किया हैं।

जिनने सतगुरु के किए उपकार को अंतर्दृष्टि से जान लिया उसकी बांह सतगुरु ने थाम ली कर्म भ्रम के जाल से मुक्त कर दिया।
धन हैं वो बिङले प्राणी  जिनने बिना किसी संकोच के जो कहा सो कर लिया।
भव से पार उतर गये।संसारिक      व्याधाओं से मुक्त हो गये।

बहुत भाँति के उपाय सांचे सतगुरु ने सीख सुनने और मानने के लिए किए हैं।

सतगुर शब्द सदा अति सुखदाई हैं। निरन्तर बिना किसी दोगाचिति के सदैव गुणगान करते रहें।

एक दिन देश (निज घर)और  परदेश (संसार सागर)का संपूर्ण निवारण स्वतः मिल जाएगा।
        ।सतनाम।