संसारी भाषा में कहें जहां से आए वही वापस जानें को ही मुक्ति कहते है बस इतनी सी बात समझ नही आ रहि और इस संसार में मस्त होकर आवागमन में लगे है !!
जैसे हमसे कहा जाए जाओ विदेश खूब घूमो और जब हम घूमते घूमते थक जाते है तो लगता है घर वापस चलो और जब घर वापस आते है तभी मन को शांति मिलती है !!
ऐसे ही हमे इस संसार से वापस जाना है इस विचार को मन में रखते हुऐ वहा जानें की तैयारी करे वही आखरी पड़ाव है क्यों हम बेकार में आवागमन में भटक रहे है काल फंदा लिए हर समय तैयार खड़ा है !!
ज्ञान में कहा है
सत बिन करम के फंद ना कटे भगत बिन मानखा जनम हारे!!
साध तो सत शब्द से भेदी झूठ से नहीं काम !!
इस संसार को समझो यह झूठ है जो भी मिटने वाला सब झूठ है यह शरीर भी मिटने वाला है !!
साधन - सुधा - सिंधु
ऐसा कोई भी असंभव कार्य नहीं है जो सत् करतार की प्रार्थना से संभव न हो सके । क्योंकि सत् करतार की शक्ति अपार है, असीम है, अनन्त है
अमृत - बिन्दु
छिपाने से पाप और पुण्य - दोनों विशेष फल देने वाले हो जाते हैं । इसलिये अपने पाप तो प्रकट कर देने चाहिये, पर पुण्य प्रकट नहीं करने चाहिये ।