इस प्राणी की ऐसी रहनी हों कि गुरुजी की कहनी सुनने में आ जाये।
इसी का उलट भाव:- यदि कहन (गुरूजी की दर्शाई बात) पूर्ण रूप से समझ विचार में आ जाये तो रहनी स्वतःसंभल जायेंगी।
दोनो जुगती(युक्ति)एक दूसरे की पूरक हैं।दोनों हीं साधना आवश्यक हैं।
भूल तो अवश्य हूई हैं। यदि भूल नहीं होती तो संसार में नहीं भेजा जाता। यह बात निश्चित तौर पर स्वीकार्य हैं।
भूल सुधार की जगह यही सृष्टि हैं। यदि इस बार असफल हो गये तो फिर कभी अवसर नहीं हैं।
सृष्टि में विचरित चौरासी लाख जोनी का दृश्य देखकर गंभीरता पूर्वक विचार करें किस-किस स्थिति में कितना कितना भयानक दुःख हैं।
गाफिली से निकलकर एकदम चौंककर जागने की आवश्यकता हैं कि यह प्राणी इस समय कहाँ कहाँ भूला हैं।
किरतम(पांच तत्व व तीन गुन में समाहित हर एक वस्तु) का मन से त्याग कर कर्ता से विनती अरदास करें।
कर्ता का जो सन्देश हैं उसी के अनुसार हर एक पल व्यतीत करें।
आनंद हीं आनंद हैं।
पूर्ण लग्न जब लग जायेगी तो परम आनंद हैं।
कहनी की चतुराई(कथनी की कला)तो हासिल हो सकती हैं। मगर करनी की निपुणता हासिल करना मूल साधना( सच्चा भक्ति भाव)हैं।
समय निर्धारित अवधि तक हीं हैं।अब इसी समय झूठ का त्याग करके सच्ची साधना का पालन करके अमल करने की आवश्यकता हैं।
।।नहीं जन्म बारम्बार।।