मनुष्य जीवन सतगुर सीख की वचनबद्धता के लिए हीं मिला हैं।
सतगुर की सीख में सतयुग की (समय पूर्वक योग्य साधनायें साधने की युक्ति) रहनी बताई गई हैं।
सत शब्द की कार(कौल-करार)छांङकर अनेकानेक संसारिक भरमों में पङना नरक का द्वार हैं।
जिन्होने सृष्टिकर्ता के सच्चे नाम का दृढ संकल्प किया हैं वो तन की कठिन से कठिन परिस्थिति में भी सृष्टिकर्ता से हीं आस अरदास करते हैं।
सृष्टिकर्ता के सच्चे प्रेमीजन सदैव सृष्टिकर्ता के सरा (नियम कानून) की पालना करनें के लिए निरन्तर तत्पर रहते हैं।
ऐसे प्राणी हर युग में जाहिर हुए हैं। साध नाम से प्रख्यात (प्रसिद्ध) हुए हैं।
करोडों प्राणियों में से कोईएक प्राणी ऐसे हैं जिन्हें समस्त खंड ब्रह्मांड में किसी भी भाँति का भय नहीं हैं।
मात्र एक सृष्टिकर्ता के हुक्मों पर अटूट विश्वास हैं। ऐसे प्राणी सदैव सृष्टिकर्ता के सत शब्दों के सच्चे गुणगान में हीं सृष्टिकर्ता का आभास(दरश) पाते हैं।
सच्चा गुणगान एक अति विशेष बृह्म प्राणियों (सतयुग की रहनी वाले)समूहों में हों तो निश्चित तौर पर सतगुरु के दरश (दर्शन)हैं।
सृष्टि कर्ता से सदैव यहीं विनती अरदास हैं कि
सच्ची साध संगत (बृह्म प्राणियों द्वारा किया गया गुणगान) ह्रदय में युगों युगों के लिए बस जाए।
।सतनाम।