आज का मंत्र
मैं नम्रता की मूर्ति हूँ ।
मैं नम्रता की मूर्ति हूँ । आज मैं निर्मान बन सबको सम्मान दूंगा। जितना मैं सम्मान दूंगा और सबको सहयोग दूंगा उतनी मुझे उनकी दुआएं प्राप्त होंगी । साथ ही सबका सहयोग मिलेगा । जो कि मुझे हर कार्य में आगे बढ़ाने में और सफलता प्राप्त करने का आधार बनेगा ।
आज मैं अपने अहम् और उग्रता को मिटा दूंगा जिससे मैं स्वत: ही निरहंकारी बन जाऊँगा । इससे मैं अपने कड़े संस्कारों और संकल्पों को झुका पाऊंगा इससे मुझ में लचीलापन का गुण विकसित होगा ।
जितना मेरे स्वभाव और संस्कारों में लचीलापन होगा उतना ही मैं सभी व्यक्तियों के साथ और सभी परिस्थितियों में स्वयं को सामंजस्य कर पाऊंगा । जिससे सभी लोगो का स्वाभाविक रूप से सम्मान प्राप्त होगा और मुझमें भावनात्मक रूप से परिपक्वता आती जाएगी l
इससे मैं उन परिस्थितियों, घटनाओं एवं लोगों को भी अपना लूंगा जिन्हें मैं परिवर्तित नहीं कर सकता । बीती बातों को जाने देना और जो हो रहा है उसे होने देना, ऐसा मेरा उद्दात दृष्टिकोण हो जायेगा l संकीर्ण दृष्टि एवम् अधिकारी पन की भावना समाप्त हो जायेगी है ।
नम्रता एक गुण होने के साथ साथ शक्ति भी है l महात्मा बुद्ध में नम्रता की शक्ति प्रबल रूप से थी उन्होंने इसी शक्ति से अंगुलिमाल जैसे खूँखार डाकू को भी भिक्षुक बना दिया l
महात्मा गांधीजी ने भी नम्रता की शक्ति से अंग्रेजो को इस देश से बाहर भी किया और देश के असंख्य वासियों के दिलों पर राज भी किया l
उस परमपिता परमेश्वर जो गुणों और शक्तियों के स्त्रोत हैं l उनके संपर्क में रहकर, उनसे जुड़कर नम्रता की शक्ति व गुण को प्राप्त कर, उसे आचरण लाकर, सबके प्रति उसका उपयोग कर मैं आत्मा भी सबके दिलों पर राज करूंगी l