हमारा जीवन प्राचीन काल से ही रहस्यमय बना हुआ है।
आद से हर जुग में 'सत्तगुर' ने अपने प्यारों को चेताया है।
" आद कदीम उदादास सत्तगुर अबगत पास ख्बासा "
जीवन कठिन और दुरूह बनाने में हम स्वंय जिम्मेदार है शरीर को जीवन मानकर,जबकि शरीर इसलिये दिया गया है कि उसमें ब्रिह्म बैठाया गया है।
ग्यान भी कह रहो है
" ब्रिह्म बैठा काया के ओले,काया बिना ब्रिह्म क्या बोलै"
प्रानी या ब्रिह्म एक ही बात है, प्रानी की सुरक्षा पहले करनी चाहिए,जो कि सिर्फ नाम और ग्यान से ही हो सकती है। जब हम प्रानी को पोषित करते है तब शरीर की सुरक्षा खुदबखुद होने लगती है। शरीर का ख्याल रखना हमारा काम है,शरीर पांच तत्व से बना है, उन भौतिक तत्वों का संतुलन रखना जरूरी है।
स्वस्थ्य शरीर से ही हमारा मन नाम और ग्यान में लगेगा,शरीर को नैतिक आचरण से ही स्वस्थ रक्खा जा सकता है।
शरीर हमारा माध्यम है जो प्रानी को ब्रिह्म का दरजा दिलाता है, सत्तगुर की मैहर से ।
मन का प्रभाव शरीर पर अधिक पडता है,मन भौतिक शरीर का अंग नही है, ना ही बुद्धि, पर बुद्धि को क्रिया करने के लिये तंत्र की आवश्यकता पडती है वह तंत्र है हमारा मस्तिष्क।
मन की दृढता के लिये सबसे उत्तम साधन है ' ध्यान,जाप और सुमरन' रोजाना 10 मिनट एकांत में बैठकर 'सत्त' का चिंतन करने से धीरे धीरे एकाग्रता बनती जायेगी, मन मजबूती पकड लेगा, शरीर में ऊर्जा का संचार हो जायेगा ।
ग्यान कह रहो है,
" खिमा खिमत लीये रहें ग्यान ध्यान राचंत, पंड कहै हो पंडता यह लच्छन साधंत "
सतनाम
Mks