*तेजराम कहैं सत्त बिचारौ*
सन्त तेजराम कह रहे हैं कि, साध का काम है कि, वह सतगुर साहिब के हुकमों को, अपने मन, अपने बिचारों में बसा ले।
साध जो भी काम करे, यह ध्यान में रखकर करे कि, भूल से भी कभी, कोई हुकम अदूली न हो जाये।
"सतगुर सेती मन परिचावै, तौ कुबध कुती ज्यों भुसती जावै"।
मन परचावै, यानी मन में हर समय सतगुर साहिब की सीख हो।
तब ही बुरी बुद्धि, बुरी सोंच, और बुराइयों से बचा जा सकता है।
"सतगुर कौ कोई विरला जानै, जो जानै सो शबद पहिचानै"।
सतगुर साहिब को वह विरले बन्दे ही जान पाये, जिन्होंने उनके हुकमों को, पुरी तरह से, समझा, जाना, और मानकर उसे पूरी तरह से अपनाया।
सत्तनाम।(राजमुकट साध)
सन्त तेजराम कह रहे हैं कि, साध का काम है कि, वह सतगुर साहिब के हुकमों को, अपने मन, अपने बिचारों में बसा ले।
साध जो भी काम करे, यह ध्यान में रखकर करे कि, भूल से भी कभी, कोई हुकम अदूली न हो जाये।
"सतगुर सेती मन परिचावै, तौ कुबध कुती ज्यों भुसती जावै"।
मन परचावै, यानी मन में हर समय सतगुर साहिब की सीख हो।
तब ही बुरी बुद्धि, बुरी सोंच, और बुराइयों से बचा जा सकता है।
"सतगुर कौ कोई विरला जानै, जो जानै सो शबद पहिचानै"।
सतगुर साहिब को वह विरले बन्दे ही जान पाये, जिन्होंने उनके हुकमों को, पुरी तरह से, समझा, जाना, और मानकर उसे पूरी तरह से अपनाया।
सत्तनाम।(राजमुकट साध)