ध्यान और मौन - ये द्वार हैं परम सत्य के

*ध्यान* *एक* *समझ* *है* , 
 *कोई* *अभ्यास* *नहीं* 

ध्यान कोई अभ्यास नहीं, यह एक समझ है अपने भीतर उतरने की। मौन कोई शब्दों की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि विचारों की समाप्ति है।

जब मन शांत होता है, तभी तुम ध्यान में प्रवेश करते हो। ध्यान में तुम कुछ नहीं करते... बस होते हो।

लोग सोचते हैं ध्यान करना है नहीं, जब तुम मौन होते हो, पूर्ण रूप से वर्तमान में होते हो,

तब ध्यान अपने आप उतर आता है। यह कोई उपलब्धि नहीं, बल्कि स्मरण है उस शुद्ध चेतना का जो तुम्हारे भीतर सदा से है।

सच्चा मौन बाहर से नहीं आता, वह भीतर से फूटता है। और जहां मौन है, वहां प्रेम है, करुणा है, आनंद है।

ध्यान और मौन - ये द्वार हैं परम सत्य के। बस बैठो... कुछ मत करो... और देखो भीतर का आकाश कैसे खिलता है।

 *सत* *अवगत* *सतनाम*