तेरा तुझको सौंप दे क्या लागत है मोर मेरा मुझमें कुछ नही जो कुछ है सब थोर

 तेरा तुझको सौंप दे क्या लागत है मोर
मेरा मुझमें कुछ नही जो कुछ है सब थोर
यह भाव आत्मा से उठकर मन मे समा जाय और अपने अति प्रिय अहं को हम आपके चरणो मे सौप सके तो सम्पूर्ण समर्पण हो जाए
हमारा होने का भाव हमे समर्पण नही करने देता अपन को मेट कर आप केवल आप का भाव रहे तो समर्पण है
यह आप धनी से मिलन की तलब से ही हो सकेगा जब विरह मे सब बल हार जाऐ और

टूटा हुयकै परबस परै
सो करनी का पूरा

जो बरत रहे है वो आपकी महर है हमारा कुछ नही
मालिक सबको भलो करियौ
अबगत सा और दूजा न कोई ।।

हमारे धनी मालिक की कार और आपकी सत्ता जो कि आप का अगाध परेम है को ह्रदय से स्वीकार करना समरपण है ।

अहंकार कभी समरपण करने नही देता है ।

आप धनी की शक्ति की बंजह से हम इस धरती पर है फिर भी फ़ैसला लेने का बिचार हमको दिया है ।

आप धनी का समरपण अद्भुत है कि आपने सब कुछ सौंप रखा है ।  ।हम उसका बिचार मनन निरबान ज्ञान के माध्यम से करने का भाव बनाएँगे तो मालिक मैहर कर देगे ।

समर्पण किया नही जाता है , वरन समर्पण में सब करना छोड़ना पड़ता है , यह धारणा भी छोडनी पड़ती है कि मैं कुछ कर सकता हूँ | हम कुछ नही कर सकते जो होगा बह मालिकलदाता की करपा है जो नही होगा बह भी मालिक की करपा है हम  जो कर पायगे बह सब आपकी दया मैहर है ,
 यही समर्पण का बुनियादी भाव है