जैसे तिल के अंदर तेल होता है

ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग । 
 तेरा सत् तुझ ही में है, जाग सके तो जाग ।। 

 - कबीर साहेब 

 अनुवाद: 
 जैसे तिल के अंदर तेल होता है, और आग के अंदर रौशनी होती है ठीक वैसे ही हमारे सत् करतार हमारे अंदर ही विद्धमान या उपस्थित है, अगर इस मनुष्य साधक प्राणी की काबिलियत और तलब / उमंग हो तो यह ढूंढ सकता है ।

*अनन्त की ओर* 

 अगर यह साधक मनुष्य प्राणी सत् करतार पर अटूट विश्वास कायम करना चाहता है तो नाशवान् चीजों पर विश्वास कम करे । नाशवान् चीजों से प्रेम करेगा, उनको महत्त्व देगा तो अविनाशी से प्रेम कैसे होगा ? नाशवान्‌ की सेवा करे, प्रत्युत विश्वास कदापि ना करे ।