अकेला कोई भी नही चल रहा,तुम्हारे साथ मालिक चल रहे है, जो तुम्हारे भीतर बैठे है !!
अकेले तुम चल भी न सकोगे, अकेले तो तुम्हारा होना भी नही है, अकेले तो स्वास भी न ले सकोगे, ह्रदय भी नही धड़केगा जो उनके सहारे धड़क रहा है, वही धड़कन है, वही स्वास ले रहा है वही स्वास है, नाम उसे कुछ भी दो परमात्मा दो, आत्मा दो या जो कहना हो कहो !!
*लेकिन* *वह* *तुम्हारे* *अंदर* *मौजूद* *है* !!
जिस* *हृदय* *में* सब के लिए प्रेम ना हो उसमें प्रार्थना कैसे जन्म ले सकती है। जहाँ प्रार्थना असंभव है, वहां परमात्मा भी असंभव है।
इसलिए प्रेम ही पहला और आखिरी मार्ग परमात्मा तक पहुँचने का..