तुम्हारे हाथ में है। लेकिन जो भी करो, पूरा करो।
सुख की आकांक्षा छोड़ सुख की आकांक्षा का अर्थ है बाहर से कुछ मिलेगा तो सुख। बाहर से कभी सुख नहीं मिलता सुख की सारी आकांक्षा क ध्यान कि आकांक्षा में रूपांतरित करो । सुख नहीं चाहिए आनंद चाहिए, और आनंद भीतर है।