मैं शरीर नही हूं !
मैं मन नहीं हूं !!
जो दिखाई पड़ता वोह नही हूं!!
जो दृश्य है, वोह नही हूं!!
मैं दृष्टा हूं!!
मैं कर्ता नही हूं!!
जो भी मेरे अनुभव में आ गया उसके पार हो गया!
मैं अनुभव का दृष्टा हूं!!
न मैं देह हूं,
न मन , न भाव, न बुद्धिमान , न बुद्धू, मैं मैं की भी सारी प्रकृति से परे हूं!!
*कल हनुमान जी से बहस हो गई* हमने उनसे कहा तुमने अपने भगवान के कितने मंदिर बनवा लिए और हर वक्त तुम उनके प्रेम में डूबे रहते हो, तुम्हारा तो सब सही चल रहा हमारा क्या!! हमे उनसे क्यों नही मिलवाते लोग अलग अलग तरीके से पुकार रहे है!!
*हनुमान जी मुस्कराकर* *बोले*
मन मरते ही ईश्वर के दर्शन हो जायेगें!!