एक आदमी रात को झोपड़ी में बैठकर एक छोटे से दीये को जलाकर कोई शास्त्र पढ़ रहा था!आधी रात बीत गई
जब वह थक गया तो फूंक मार कर उसने दीया बुझा दिया!लेकिन वह यह देख कर हैरान हो गया कि जब तक दीया जल रहा था,पूर्णिमा का चांद बाहर खड़ा रहा!लेकिन जैसे ही दीया बुझ गया तो चांद की किरणें उस कमरे में फैल गई!वह आदमी बहुत हैरान हुआ यह देख कर कि एक छोटे से दीए ने इतने बड़े चांद को बाहर रोेक कर रक्खा इसी तरह हमने भी अपने जीवन में अहंकार के बहुत छोटे-छोटे दीए जला रखे हैं! जिसके कारण मेरे दाता मालिक का चांद बाहर ही खड़ा रह जाता है!जब तक हम वाणी को विश्राम नहीं देगे तब तक मन शांत नहीं होगा!मन शांत होगा तभी दाता मालिक की उपस्थिति खुदवा खुद महसूस देने लगेंगी!
सत्तनाम!
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