दूसरे की निंदा करिए और अपना घड़ा भरिए
"निंदा करै सो कर्म लगावै, भूला जीव भेद नहीं पाबै "
हम जाने-अनजाने अपने आसपास के साध बाइयों की निंदा करते रहते हैं:जबकि हमें उनकी वास्तविक परिस्थितियों का तनिक भी पता नही होता कौन कितना नाम जप रहा है जिसका हमे तनिक आभास भी नही होता निंदा रस का स्वाद बहुत ही रुचिकर होता है सो लगभग हर व्यक्ति इस स्वाद लेने को आतुर रहता है।वास्तव में निंदा एक ऐसा मानवीय गुण है जो सभी व्यक्तियों में कुछ न कुछ मात्रा में अवश्य पाया जाता है।जब कि हमे ज्ञात है कि निंदा का परिणाम कितना भयानक होता है फिर भी हम कर्म करने से नही चूकते,जब हम किसी की बेवजह निंदा करते है तो हमें उसके पाप का बोझ भी उठाना पड़ता है तथा हमे अपना किये गए कर्मो का फल तो भुगतना ही पड़ता है,अब चाहे हँस के भुगतें या रो कर।
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