संत रैदास के अंधविस्वास, पाखंड, कर्मकांड, जातिवाद, ब्रामणवाद पर करारी चोट करते दोहे

संत रैदास के अंधविस्वास, पाखंड, कर्मकांड, जातिवाद, ब्रामणवाद पर करारी चोट करते दोहे ।।

👉रैदास एक ही बूँद से, भयो सब विस्तार ।
     मुर्ख है जो करे वर्ण अवर्ण विचार ।।
     – रैदास
इसके माध्यम से संत रैदास उस #कृष्ण को #मुर्ख बता रहे है । जो इंसान को अलग अलग बांटता है, जो गीता में इंसानो में ही भेद-भाव कर उन्हें अलग-अलग वर्ण अवर्ण जातियों में बांटता है । जबकि रैदास के अनुसार इंसान सभी एक ही है ।

👉तोडू न पाती, पूंजू न देवा ।
     बिन पत्थर, करें रैदास सहज सेवा ।।
    – रैदास
अर्थ- बिना किसी फूल माला, पत्तियां तोड़े बिना, न ही किसी देवी-देवता की पूजा करे बिना, न ही इन पथरों के भगवानों को पूजे बिना अर्थात पूजा कर्मकांड पाखंड अंधविस्वास के बिना इंसान को केवल सत्य कर्म मानवता की सहज सेवा करनी चाहिए. संसार में प्रेम ,भाईचारा, नैतिकता, मानवता ही सबसे बड़ी सेवा है ।

👉मेरी जाति कुट बांढला,ढोर ढुंवता नित ही बनारस आसा पासा।
    अब विप्र प्रधान तिहि करें दंडवति, तोरे नाम सरणाई रैदासा ।।
    – रैदास
मैं रैदास नीची जाति का समझा जाता हूँ तथा मेरे जैसे लोग रोजाना बनारस के आसपास मरे हुए पशु ढोते है. अब देखो विप्र(ब्राह्मणों) का प्रधान(रामानंद) मुझे दण्डवत प्रणाम कर रहा है और मेरी शरण में आता है ।”रैदास परचई” में इस किस्से का वर्णन है की रामानन्द ने गुरु रैदास व कबीर से धर्म पर बहस की और उनसे हार गये. तत्पश्चात उन्हें अपना गुरु स्वीकार करते है ।

👉कहें रैदास सुनो भाई सन्तों, ब्राह्मण के है गुण तीन ।
     मान हरे, धन सम्पत्ति लुटे और मति ले छीन ।।
     – रैदास.

👉रैदास हमारे रामजी दशरथ जे सुत नाहीं ।
     राम रम रह्यो हमीं में, बसें कुटुम्भ माहीं ।।
     – रैदास
मेरा राम(ईश्वर) वह राम नही है जो दसरथ का बेटा है ।मेरा राम तो मेरे रोम रोम में है, मेरे कर्म में है. मौको कहा ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास में ।

👉जात जात के फेर में उलझ रहे सब लोग ।
     मनुष्यता को खा रहा, रैदास जात का रोग ।।
     जात-जात में जात है, ज्यो केले में पात ।
     रैदास मानस न जुड़ सके, जब तक जात न जात ।।
     – रैदास
अर्थ- रैदास इस दोहे में ब्राह्मणों आर्यो की बनाई वर्ण-व्यवस्था जाति व्यवस्था की कड़ी आलोचना करते हुए कहते है की ब्राह्मणों का बनाया जातिवाद का यह ज़हर सब में फेल गया है. जिसे देखो वह जाति के इस घिन्होंने दलदल में उलझ रखा है। रैदास कहते है की जाति एक रोग है बिमारी है जो इंसान को खाय जा रही है जिससे इंसानो के अन्दर का इंसान ही ख़त्म हो रहा है. जाति से पनपे भेदभाव, छुआछूत, गैरबराबरी शोषण ने इंसानियत मानवता को ही ख़त्म कर दिया है । अपने दूसरे दोहे में रैदास कहते है की ब्राह्मणों ने इंसान को जातियों जातियो उसमे भी अनगिनत जातियो में बाँट रखा है । रैदास जातियो के इस विभाजन की तुलना केले के कमजोर तने से करते है जो केवल पतियों से ही बना होता है । जैसे केले के तने से एक पत्ते को हटाने पर दूसरा पत्ता निकल आता है ऐसे ही दूसरे को हटाने पर तीसरा चौथा पांचवा .. ऐसे करते करते पूरा पेड़ ही ख़त्म हो जाता है । उसी प्रकार इंसान जातियो में बटा हुआ है । जातियों के इस विभाजन में इंसान बटता बटता चला जाता है पर जाति ख़त्म नही होती, इंसान ख़त्म हो जाता है । इसलिए रैदास कहते है की जाति को ख़त्म करें. क्योकि इंसान तब तक जुड़ नही सकता,एक नही हो सकता, जब तक की जाति नही चली जाती ।

👉सौ बरस रहो जगत में, जीवत रह कर करो काम ।
     रैदास करम ही धरम है, करम करो निष्काम ।।
     – रैदास
अर्थ – रैदास कहते है की आप 100 वर्ष जियो या जितना भी जियो पर जब तक जीवित हो काम करे । ब्राह्मणों के सडयंत्र “भक्ति” में न उलझे, भक्ति मूर्खो का काम है । ब्राह्मण तुम्हे भक्ति के नाम पर तुम्हे निठल्ला कामचोर बोझ बनाता है. तुम्हे माला जपना राम नाम जपने में उलझाये रखता है । आपके पास पहले से ही धन का आभाव है ब्राह्मणों ने आपको खूब लूटा है, इसलिए आप जब तक जीवित हो काम करें और काम का पैसा भी पूरा लेंवे। ब्राह्मणों के “कर्म किये जा फल की चिन्ता ना कर ” जाल में न उलझे. रैदास आगे और खुलकर कहते है-

👉“करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस |
     कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास” ||
भावार्थ-
इस श्लोक में गुरु रैदास अपने सेवकों को काम करने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि, “आप अपने काम (मेहनत) करने की निति में सदा ही बंधे (लगे) रहना, परन्तु उसके बदले में जो आपको मजदूरी मिलनी है, उसकी आशा कभी भी नहीं छोडनी है | क्योंकि काम (मेहनत) करना मनुष्य का धर्म है, यह बात मैं आपको सच करके बता रहा हूँ ” ||
इस तरह गुरु रैदास ने काम (मेहनत-मजदूरी) करने के बदले में दाम (पैसा) की भी खुल कर वकालत की है |

👉हिन्दू धर्म में #मन्त्रो का महत्वपूर्ण स्थान है ।
बिना मन्त्र उच्चारणों के उनका कोई भी कार्य सम्पन नही होता । हिन्दू अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक पूरे जीवन इन मन्त्रो को जपने में उलझा रहता है ।
दरसल हिन्दू इन मन्त्रो को जपने की प्रेरणा अपने ही देवताओ से लेते है । #हनुमान राम राम जपता है, #नारद नारायण नारायण जपता है, आजकल कई #राधे_राधे भी जपते है। इनके इस तरह नाम या मन्त्र जपने से क्या हासिल होता है यह समझ से परे है ।
अब #कबीर और #रैदास अपनी क्लास लगते है , अपनी क्लास में ब्राह्मणवाद पर चपेट मार सवाल करते हैं. की क्या गुड़- गुड़ जपने से क्या मुह मीठा हो जाता है क्या ? क्या रोटी-रोटी जपने से पेट भर जाता है क्या ? अगर नही. तो फिर यह मूर्खता क्यों ? भक्ति तो मूर्खो का काम है. समझदारो को यह शोभा नही देती। समझदार बने सत्य कर्म करे लोगो को इन धर्म भक्ति  कर्मकांड अंधविस्वास से मुक्त करे ।