सत्संग करने वालों के मन में मरने का भय नहीं होना चाहिये । कारण कि यह मृत्युलोक है, मरनेवालोंका लोक है । यहाँ कोई मरनेसे बच सकता ही नहीं । *एक दिन मरना तो पड़ेगा ही । जब मरनेसे बच सकते ही नहीं तो फिर डर किस बातका ? मरनेसे नहीं डरेंगे तो परमात्माकी प्राप्ति हो जायगी ! मरनेसे डरोगे तो मरते रहो और डरते रहो‒इसका अन्त नहीं आयेगा ।* अगर मरनेसे डरना छोड़ दो तो आपको अभय-पद मिल जायगा, मरना सदाके लिये मिट जायगा, मुक्ति हो जायगी, तत्त्वज्ञान हो जायगा, परमात्मप्राप्ति हो जायगी ! मरनेसे नहीं डरनेसे बड़ा भारी लाभ है और डरनेसे बड़ा भारी नुकसान है । अगर सत्संग करनेवाले भी मरनेसे डरते रहें तो सत्संग करनेवाले और सत्संग न करनेवालेमें क्या फर्क रहा ? अगर मरनेका भय छूट जाय तो फिर किसी तरहका भय बाकी नहीं रहेगा ।