*सबके,सुख,दुख,अपने,अपने*
हमारा दुख,सुख, हमारी मानसिकता, हमारी सोंच का दर्पण है।
हमें जहॉ जो अच्छा लगता है, हमारा चित मन भी वहीं उसी में होता है।
हमारा चित मन जहॉ होता है, हमारा सुख दुख भी उसी से जुडा होता है। हमारी दशा खराब या सही उसी के अनुकूल होगी।
वह जैसा होगा हम भी वैसे ही हो जायेंगे।
उसका टूटना, उसका रूठना, उसकी झलक, उसका रुझान, हमारे जीवन में जो प्रभाव डालते हैं, उसी पर टिका है, हमारी जिन्दगी का पूरा दारोमदार।
हमारी शान्ती हमारी अकुलाहट हमारी वेचैनी, हमारा सुख दुख, हमारा सारा बजूद, हमारा पूरा जीवन उसी के साथ जुडा है।
हमारी सोंच पर वह जो प्रभाव डालता हैं, हम बैसे ही हो जाते हैं।
हमारा दुख सुख भी उसी से जुडा रहता हैं, हम उसी के अनुरुप ढल जाते हैं।
अगर वहॉ सब कुछ हमारी सोंच के अनकूल है, तो हम सुखी हैं।
अगर वहॉ कुछ भी हमारी सोंच के प्रतिकूल है, तो हम दुखी है।
इतने क्षणिक हैं हम।
हमारा दुख सुख भी इतना ही क्षणिक है।
जो समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है।
अगर हमारा मन संसार से जुडा है तो हम साधारण मनुष्य हैं।
मनको मालिक से जोडकर हम साध का दर्जा प्राप्त कर सकते हैं।
सत्तनाम।(राजमुकट साध)
हमारा दुख,सुख, हमारी मानसिकता, हमारी सोंच का दर्पण है।
हमें जहॉ जो अच्छा लगता है, हमारा चित मन भी वहीं उसी में होता है।
हमारा चित मन जहॉ होता है, हमारा सुख दुख भी उसी से जुडा होता है। हमारी दशा खराब या सही उसी के अनुकूल होगी।
वह जैसा होगा हम भी वैसे ही हो जायेंगे।
उसका टूटना, उसका रूठना, उसकी झलक, उसका रुझान, हमारे जीवन में जो प्रभाव डालते हैं, उसी पर टिका है, हमारी जिन्दगी का पूरा दारोमदार।
हमारी शान्ती हमारी अकुलाहट हमारी वेचैनी, हमारा सुख दुख, हमारा सारा बजूद, हमारा पूरा जीवन उसी के साथ जुडा है।
हमारी सोंच पर वह जो प्रभाव डालता हैं, हम बैसे ही हो जाते हैं।
हमारा दुख सुख भी उसी से जुडा रहता हैं, हम उसी के अनुरुप ढल जाते हैं।
अगर वहॉ सब कुछ हमारी सोंच के अनकूल है, तो हम सुखी हैं।
अगर वहॉ कुछ भी हमारी सोंच के प्रतिकूल है, तो हम दुखी है।
इतने क्षणिक हैं हम।
हमारा दुख सुख भी इतना ही क्षणिक है।
जो समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है।
अगर हमारा मन संसार से जुडा है तो हम साधारण मनुष्य हैं।
मनको मालिक से जोडकर हम साध का दर्जा प्राप्त कर सकते हैं।
सत्तनाम।(राजमुकट साध)