स्वर्ग नर्क यही है

स्वर्ग नर्क यही है

लोग कहते हैं कि संतों को स्वर्ग भेजा जाता है और पापियों को नर्क।

 यह बात बिलकुल गलत है। संतों को स्वर्ग नहीं भेजा जाता - संत तो जहां होते हैं वहां स्वर्ग होता है। 

और पापियों को नर्क नहीं भेजा जाता -पापी जहां होते हैं वहीं नर्क होता है। भेजने की जरूरत ही नहीं पड़ती। वे खुद ही अपना नर्क और अपना स्वर्ग बना लेते हैं।

 मुक्ति
 यानी
 मन से मुक्ति

मन से मुक्त होकर ही कोई मुक्त हो सकता है। मन से मुक्ति ही एकमात्र मुक्ति है; 

और कोई मुक्ति नहीं है, मन ही बंधन है, दासता है,,,,,,,,, गुलामी है। जहा मन है वहा वासना है ...

 *सत* *अवगत* *सतनाम*
सत्संग का चमत्कार

सन्तों में जो कुछ विशेषता आती है, वह सत् करतार से ही आती है, उनकी खुद की नहीं होती । इसलिये सन्त लोग सत् करतार का ही प्रचार करते हैं ।

ज्ञान के दीप जले

 अगर किसी मनुष्य प्राणी के भीतर वास्तव में जानने की लगन पैदा हो जाय तो पेड़ों से, दीवारों से भी शिक्षा मिल जाय ! लोग कहते हैं कि गुरु नहीं मिलता प्रत्युत इसके विपरीत साधक संतो ने तो महसूस किया है कि असलियत में शुद्ध रूप से शिष्य - सिख नहीं मिलते !