दुःख ने हमे नहीं, हमने दुःख को पकड़ रखा है

अहंकार ने आपको नहीं
पकडा हुआ है, आपने अहंकार
को पकड़ा हुआ है। संसार ने आपको
नहीं पकड़ा हुआ है, आपने संसार को पकड़ा
हुआ है। दुख नहीं आपको जकड़े हैं, आपकी ही
कृपा का फल है। दुख आपका पीछा नहीं कर रहे हैं,
दुखों ने कुछ ठान नहीं रखी है आपको दुख देने की,
आपके निमंत्रण पर ही आते हैं।

साधारणत: हम ऐसा सोचते नहीं।
साधारणत: हम सोचते हैं, क्यों है दुख?
क्यों है यह संसार का कष्ट? क्यों है यह आवागमन?
क्यों यह अहंकार सताता है? कैसे इससे छुटकारा हो? निरंतर हमारे मन में यह बात चलती है, कैसे इससे छुटकारा हो?

लेकिन यह सूत्र आपको
बड़ा निराश करेगा। क्योंकि यह
सूत्र कहता है, छुटकारे का सवाल ही
नहीं है। क्योंकि अहंकार ने आपको पकडा
नहीं है, संसार ने आपको रोका नहीं है, जन्मों ने
आपको बुलाया नहीं है, यह आपकी मर्जी है।

इसलिए यह पूछना गलत
है कि कैसे छुटकारा हो, यही
पूछना उचित है कि किस भाँति,
किस तरकीब से हमने इस सब दुख,
उपद्रव को पकड़ रखा है। छुटकारे का
सवाल ही नहीं उठाना चाहिए। सवाल यही
होना चाहिए कि कौन सी है हमारी व्यवस्था, कौन
सा है हमारा ढंग, कि हम दुख को पकड़ लेते हैं, कि हम दुख को पकड़ते ही चले जाते हैं, कि अपने ही हाथ से हम आरोपित करते चले जाते हैं - और नए संसार, और नए जन्म, और नए जीवन। वासना के नए - नए विस्तार,
नए आकाश हम कैसे निर्मित करते चले जाते हैं -
इसे ही समझना जरूरी है।

इसके बहुत अंतर्निहित अर्थ होंगे।
इसका एक अर्थ तो यह होगा कि मोक्ष
कोई ऐसी उपलब्धि नहीं है जो पाने को है।
संसार जरूर खोने को है, लेकिन मोक्ष पाने को नहीं है। अगर आप संसार को छोड़ने में राजी हो जाएं,
तो मोक्ष पाया ही हुआ है। इसका यह अर्थ
हुआ कि मुक्त तो आप हैं ही, बड़ी
तरकीब से आप बंधन में पड़े है।

ओशो 🌹🌹