*साध बिरद ऐसा रे भाई,
जिसकी सिगरी पिरथी सिपत कराई*
क्या हमने साध की उन साधनाओं, और विशेषताओं का कभी बिश्लेषण किया,
जिनसे प्रभाबित होकर, दुनियां में साध को उच्च स्थान प्राप्त हुआ।
1. "साध शीतल बानी बोलै"।
शीतल बानी बोलना, यानी 'सत्तअबगत' नाम को जपना।
2."समद्रष्टि के लछन पिछानै"।
समद्रष्टि, यानी अपने पराये सभी के साथ समान व्यवहार।
दुख हो या सुख हर हाल में खुश रहना।
" कोई साधूरा सुध पायी, बौ एकै रंग सदांई"।
मालिक में पूर्ण आस्था रखने बाले साध, हर समय एक रंग,
(मालिक के रंग) में ही सराबोर रहते हैं, और मालिक के हुकमों का अनुशरण करते हैं।
3."मन मै दुबिधा कभी न आनैं"।
किसी किश्म की कोई दुबिधा, साध के मन में नहीं होती।
4."तामस तड़क साध कै नाहीं"।
साध की विशेषता है कि, उसके पास, क्रोध और अहंकार नहीं होंगे।
5."बदफैलौं देख साध नहीं हंसै"।
बुरी बातों को देख, सुनकर, साध कभी खुश नहीं होते।
6."साध होय टोंटा नहीं बंधै"।
साध कभी घटी के काम नहीं करते।
7."खाली बांक परत नहीं संधै"।
खाली खोखली और झूँठी बातें, साध कभी नहीं बोलते।
8."ऐसा साध भगत के मांहीं,देख पराई झंपै नाहीं"।
भक्ति करने बाले साध को, दूसरों की तरक्की देखकर, व्यापना नहीं होती।
9."साध तौ सत्त शब्द भेदी"।
असली साध वही है, जिसे सतगुर साहिब के हुकमों की, पूर्ण जानकारी हो।
10."झूँठ सै नहीं काम"।
तीरथ वरत और पत्थर की पूजा से साध दूर रहते हैं।
"बाकी निदा करै सो करम लगाबै"।
जो ऐसे साध की निंदा (बुराई) करते हैं, वह कसर के काम करके, कशूरवार होते हैं।
"महादेव कहैं हम साध कहामैं, तुम्हरे जग मैं कैसै आमैं"।
महादेव ने ब्रह्मा से कहा था कि, हम साध हैं, तुम्हारी दाबत में हम नहीं आ सकते।
"सतगुर कहैं सुपच कौ लाबौ, कर आदर वौ साध बुलाबौ"।
सतगुर साहिब नें, पंडवों को साध का आदर करने की सीख दी।
सत्तनाम।
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