सोने में जब जड़ कर हीरा,
आभूषण बन जाता है,
वह आभूषण फिर सोने का नही,
हीरे का कहलाता है ।
"काया इंसान की सोना है, और
कर्म हीरा कहलाता है,
कर्मों के निखार से ही,
मूल्य शरीर का बढ़ जाता है
जब तेरी रहमत पर मेरी नज़र जाती है;
ऐ मेरे मालिक मेरी आँखें भर आती हैं;
तुम दे रहे हो मुझे इस क़दर कि;
कुछ मांगने से पहले ही मेरी झोली भर जाती है।
आभूषण बन जाता है,
वह आभूषण फिर सोने का नही,
हीरे का कहलाता है ।
"काया इंसान की सोना है, और
कर्म हीरा कहलाता है,
कर्मों के निखार से ही,
मूल्य शरीर का बढ़ जाता है
जब तेरी रहमत पर मेरी नज़र जाती है;
ऐ मेरे मालिक मेरी आँखें भर आती हैं;
तुम दे रहे हो मुझे इस क़दर कि;
कुछ मांगने से पहले ही मेरी झोली भर जाती है।