इस संसार में हम कुछ हैं, या हमारा कुछ है, यही सबसे बडा भरम है

"भरम का बाहिला.............,
              जोर असुरां वहैं"।
सतगुर के मिले सै,जीव त्यारै"।
भरम का वहाव और आसुरी शक्तियों का जोर ही, भक्ति मारग में सबसे बडी रुकावट है।
यह घातक बीमारी, एक दिन चौरासी में पहुचा देगी।
इस संसार में हम कुछ हैं, या हमारा कुछ है, यही सबसे बडा भरम है।
 काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, भय, भरम, तृष्ना, ममता, मान की अधिकता ही, आसुरी शक्तियां हैं।
क्या हम मानने के लिये तैयार है कि यहॉ हमारा कुछ भी नहीं है।
जबकि हमारे सामने देखते देखते, कितने ऐसे चले गये, जिन्होने जान से प्यारी,   संपत्ति,अर्जित करने में, कितनों को सताया, कितनों का दिल दुखाया।
न जाने कितनी लूट खंसोंट की, कितने पाप कर्म किये।
अन्त में सब यहीं छोंड गये।
यह शरीर, यह संसार, मनुष्य को इतना भ्रमित करता है कि, मनुष्य को मरते दम तक, अपना ही लगता है।
आखिरी सांस तक भरम में डूबा मनुष्य, संसार में कमाई सारी दौलत को यहीं छोंड, अपनी आसुरी शक्तियों को संजोये, इस देह से मुक्त हो, दुसरी देह प्राप्त करता है।
पिछले जनम की दौलत तो पीछे ही छूट गयी।
 लेकिन उसे अर्जित करने के लिये जो पाप किये थे, वह पाप की पोटली साथ लग गयी।
 फिर शुरु हुआ वही दौर, क्योंकि आसुरी शक्तियां भी साथ ही आयी हैं।
यही सिलसिला एक दिन मनुष्य को चौरासी में ले जायेगा।
"सतगुर के मिले सै,जीव त्यारै"।
सतगुर साहिब से मिलना यानी उनके हुकमों को मानना।यही एक मार्ग है जो भवसागर से पार उतार सकता है।
सत्तनाम।(राजमुकट साध)