आज हम जिस स्थान पर बैठे, खडे या स्थापित हैं।

*स्थानान्तरण*
हम सब जानते हैं।
आज हम जिस स्थान पर बैठे, खडे या स्थापित हैं।
बीत कल में इस स्थान पर, कोई और था, और आने बाले कल में, कोई और होगा।
इस परिवर्तनशील दुनियां में  सब कुछ परिवर्तनीय है।
हबा का रुख बदलता है, मौसम का मिजाज बदलता हैं।
पुराने पत्ते झडते हैं, नये पत्ते आते हैं।
बच्चे पैदा होते हैं, बडे होते हैं, बूढे होते हैं, और मर जाते हैं।
यह क्रम यह नियम संसार की रचना करने बाले सृष्टिकर्त्ता अबगत आप का बनाया हुआ है, जो अकाट्य है।
जो पैदा हुआ है वह मरेगा जरूर।
 किसी, किसी को, बुढापा, तो किसी को जवानी भी नसीव नहीं होती हैं।
क्या कभी हमने सोंचा है कि, शरीर से अलग होने के बाद, हमारा प्रानी कहॉ जाता है।
परिबर्तन में वह कौन सा रूप पाता है।
यह मालिक दाता के हॉथ में है, वह जो भी हमें देंगे, जहॉ भी हमें भेजेंगे, सब हमारी करनी पर निर्भर है।
 प्रानी को ही सब कुछ भोगना पडता हैं।
शरीर तो यहीं रह जाता है। और परिवार बाले उसे जलाकर समाप्त भी कर देते हैं।
हमें मोंह करना चाहिये प्रानी का, खूब नाम जपें, अच्छे कर्म करें,इसीसे प्रानी को लाभ होगा।
 लोभ करना चाहिये इन सांसों का, एक भी सांस नाम लेने से खाली न जाये।
 सो तो हम कर नहीं पा रहे।
 बल्कि इसके विपरीत अपना पूरा जीवन संसार की मिटने छुटने बाली वस्तुओं को संजोने, सम्हालने में लगा दिया।
अब आगे क्या होगा किसी को पता नहीं।
नाम साथ में लेकर जाने बाला, निश्चय ही मनुष्य जन्म प्राप्त  करता है।
"नाम का फुरमान ऐसा जासै, औतरे औतार"।
सत्तनाम (राजमुकट साध)