थायराइड का दुश्मन

थायराइड का दुश्मन 

थाइराइड आजकल एक आम समस्या बन गई है, जो शरीर में हार्मोन असंतुलन के कारण होती है। यह स्थिति हाइपोथायरॉयडिज्म (थायरॉयड हार्मोन की कमी) या हाइपरथायरॉयडिज्म (थायरॉयड हार्मोन की अधिकता) के रूप में प्रकट हो सकती है।

हालांकि, आयुर्वेद में इसका प्राकृतिक समाधान मौजूद है। एक विशेष पेड़ की पत्तियां 21 दिन तक सेवन करने से थाइराइड की समस्या को जड़ से खत्म किया जा सकता है। आइए जानते हैं इस उपाय के बारे में विस्तार से।
कौन सा पेड़ और उसकी पत्तियां,,?
यह चमत्कारी पेड़ है बेल (बिल्व वृक्ष)। बेल की पत्तियां आयुर्वेद में औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध हैं। इनमें एंटीऑक्सिडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी, और इम्यून मॉड्यूलेटरी गुण पाए जाते हैं, जो थाइराइड ग्रंथि के कार्य को संतुलित करने में मदद करते हैं।

सेवन का सही तरीका,,,,

पत्तियां चुनें:ताजी, हरी और स्वस्थ पत्तियों का चयन करें। ध्यान रखें कि पत्तियां साफ और कीटनाशक मुक्त हों।
धोकर साफ करें:पत्तियों को साफ पानी से धो लें ताकि किसी भी प्रकार की गंदगी या धूल हट जाए।
खाली पेट सेवन करें:सुबह खाली पेट दो जोड़ा पत्तियां चबाकर खाएं। यानी 2 जोड़ा मतलब 6 पत्ते,,,एक जोड़े में तीन पतियां होती है,,,आप चाहें तो इनका पेस्ट बनाकर एक गिलास गुनगुने पानी के साथ भी ले सकते हैं।
लगातार 21 दिन तक:इस प्रक्रिया को बिना रुके लगातार 21 दिन तक करें। थाइराइड ग्रंथि पर इसका सकारात्मक प्रभाव नजर आने लगेगा।

बेल पत्तियों के स्वास्थ्य लाभ,,, यह वही बेलपत्र का वृक्ष है जो भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है,,,,

1. थाइराइड ग्रंथि का संतुलन:

बेल की पत्तियों में थाइराइड हार्मोन को नियमित करने वाले गुण होते हैं। यह ग्रंथि के आकार को सामान्य बनाए रखने में मदद करती हैं।

2. इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाना:

इन पत्तियों में मौजूद पोषक तत्व शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं, जिससे थाइराइड से जुड़ी अन्य समस्याओं से बचाव होता है।

3. शरीर से विषैले पदार्थों को निकालना:

बेल की पत्तियां शरीर को डिटॉक्स करती हैं और थाइराइड ग्रंथि को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करती हैं।
बेल की पत्तियां थाइराइड जैसी गंभीर समस्या का प्राकृतिक और सुरक्षित समाधान प्रदान करती हैं। 21 दिन तक इनका नियमित सेवन हार्मोन असंतुलन को ठीक करने और थाइराइड ग्रंथि को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है। आयुर्वेद के इस चमत्कारी उपाय को अपनाकर आप अपने स्वास्थ्य में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं..

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जब आप किसी की निंदा सुनते हैं

जब आप किसी की निंदा सुनते हैं तो आप बहुत जल्दी उत्सुक हो जाते हैं। अगर कोई किसी की बुराई कर रहा हो तो आपका मन आनंद से भर उठता है।

अगर कोई किसी की प्रशंसा कर रहा हो तो आपको बहुत ऊब होने लगती है। प्रशंसा सुनने में आपको आनंद नहीं आता, लेकिन निंदा सुनने में आता है।

क्यों? क्योंकि जब भी आप किसी की निंदा सुनते हैं तो आपके अहंकार को लगता है कि आप बेहतर हैं। दूसरे की बुराई से यह सिद्ध हो जाता है कि आप अच्छे हैं।

जब आप किसी की प्रशंसा सुनते हैं तो आपको बहुत पीड़ा होती है, कि कोई आपसे बेहतर है — और भला ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई आपसे बेहतर हो? इसलिए आप निंदा को बिना किसी विरोध के स्वीकार कर लेते हैं, और प्रशंसा को टालते रहते हैं।

अगर कोई कह दे कि फलां आदमी पापी है, तो आप कभी नहीं पूछते कि क्यों कह रहे हो? क्या कारण है? कोई सबूत है? नहीं। आप बस जाकर दूसरों को यह खबर दे देते हैं। इतना ही नहीं, आप उसमें बहुत कुछ नया भी जोड़ देते हैं। जितना आप जानते हैं उससे कहीं ज़्यादा आप कहते हैं।

लेकिन अगर कोई कह दे कि फलां आदमी महात्मा है, तो आप हजारों सवाल उठाते हैं। साफ़-साफ़ देखने के बावजूद भी आपके भीतर शक बना रहता है — कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं?

आपकी नजर में सब पापी हैं, और अगर कोई महात्मा समझा जा रहा है तो ज़रूर अंदर से छिपा हुआ पापी होगा। अभी पोल नहीं खुली है। सोचते हैं, आज नहीं तो कल खुल ही जाएगी, तब सबको पता चल जाएगा।

लेकिन यह मान लेना कि सब पापी हैं — यह आपका माना हुआ सत्य है, क्योंकि यह एक तरकीब है जिससे आपका अहंकार फलता-फूलता है, दोगुना-चौगुना बढ़ता है। सबको छोटा समझो, सबको बुरा कहो — तो आपको अच्छा लगता है। आपके अहंकार को खाद-पानी मिलता है।

~ ओशो 🌷

भूमि_आंवला और फैटी लिवर के लिए इसके लाभ

भूमि_आंवला और फैटी लिवर के लिए इसके लाभ
भूमि आंवला ( #Phyllanthus_niruri ), जिसे #भुई_आंवला या झरफुका भी कहा जाता है, आयुर्वेद में एक शक्तिशाली औषधीय पौधा है। यह लिवर के स्वास्थ्य के लिए विशेष रूप से लाभकारी है, खासकर फैटी लिवर की समस्या में। इसके प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

🛑 लिवर डिटॉक्सिफिकेशन: भूमि आंवला में प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट और हेपेटोप्रोटेक्टिव गुण होते हैं, जो लिवर से विषाक्त पदार्थों (टॉक्सिन्स) को बाहर निकालने में मदद करते हैं।

➡️ फैट कम करना: यह लिवर में फैट के जमाव को रोकता है और पहले से मौजूद फैट को धीरे-धीरे कम करने में सहायक है।

♦️ लिवर की कार्यक्षमता बढ़ाना: यह लिवर को पुनर्जनन (रीजनरेट) करने और उसकी कार्यक्षमता को सुधारने में मदद करता है।

🔵 सूजन कम करना: इसके एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण लिवर की सूजन को कम करते हैं, जो फैटी लिवर और हेपेटाइटिस जैसी समस्याओं में फायदेमंद है।

♦️ पाचन सुधार: यह पाचन तंत्र को मजबूत करता है, जो फैटी लिवर के प्रबंधन में सहायक है, क्योंकि खराब पाचन इस समस्या को बढ़ा सकता है।

🟡  फैटी लिवर के लिए उपयोग की विधि
भूमि आंवला का उपयोग विभिन्न रूपों में किया जा सकता है। उपयोग से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लेना उचित है, क्योंकि खुराक व्यक्ति की स्थिति, उम्र और स्वास्थ्य पर निर्भर करती है। 

👉 सामान्य उपयोग विधियाँ निम्न हैं:

▪️भूमि आंवला का रस:

ताजा भूमि आंवला और पुनर्नवा (बराबर मात्रा) के पौधे (पत्ते, तना, जड़) का रस निकालें।
10-20 मिली रस को 1 कप गुनगुने पानी या शहद के साथ दिन में 1-2 बार लें।
इसे सुबह खाली पेट या भोजन के बाद लिया जा सकता है।

🔸 भूमि आंवला पाउडर:

सूखे पौधे का चूर्ण (1-2 चम्मच) गुनगुने पानी या शहद के साथ दिन में 1-2 बार लें।
इसे 400 मिली पानी में 10 ग्राम चूर्ण उबालकर काढ़ा बनाकर भी पी सकते हैं। जब पानी एक-चौथाई रह जाए, छानकर सुबह खाली पेट या रात को भोजन से 1 घंटे पहले पिएं।

▪️काढ़ा:
भूमि आमला और पुनर्नवा पौधे के पत्तों, तने और जड़ को बराबर मात्रा में लेकर पानी में उबालकर काढ़ा तैयार करें।
20-30 मिली काढ़ा दिन में 1-2 बार लें। यह लिवर और पाचन के लिए प्रभावी है।

♦️ जूस के साथ मिश्रण:
भूमि आंवला के रस को अन्य फलों के जूस (जैसे संतरे या अनार) के साथ मिलाकर पी सकते हैं, जिससे स्वाद बेहतर होता है।

👉 खुराक और सावधानियाँ
खुराक: सामान्यतः 1-2 चम्मच पाउडर या 10-30 मिली रस दिन में 1-2 बार। सटीक खुराक के लिए चिकित्सक से सलाह लें।

♦️सावधानियाँ:

• गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं को उपयोग से पहले डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

• अधिक मात्रा में सेवन से पेट में हल्की जलन हो सकती है।
शराब के साथ इसका सेवन करने से पहले चिकित्सक से परामर्श करें।

• डायबिटीज या ब्लड प्रेशर की दवाएँ ले रहे हों, तो डॉक्टर से सलाह लें, क्योंकि यह ब्लड शुगर को प्रभावित कर सकता है।

🔸 अन्य टिप्स

• फैटी लिवर के लिए भूमि आंवला के साथ-साथ स्वस्थ आहार (कम तेल, कम जंक फूड, अधिक फाइबर) और नियमित व्यायाम जरूरी है।

• तनाव कम करें और पर्याप्त नींद लें, क्योंकि ये लिवर के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।

♦️निष्कर्ष
भूमि आंवला फैटी लिवर के लिए एक प्रभावी प्राकृतिक उपाय है, जो लिवर को डिटॉक्स करता है, फैट को कम करता है और सूजन को नियंत्रित करता है। इसे रस, पाउडर या काढ़े के रूप में लिया जा सकता है, लेकिन सही मात्रा और विधि के लिए आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से परामर्श जरूरी है।

मोह

पिता पहले बहुत परेशान रहते थे। उन्हें ठीक से नींद नहीं आती थी, उनका शरीर थका रहता था। वह चिड़चिडे हो गए थे, बात-बात पर नाराज़ हो जाते थे । हर समय कोई न कोई बीमारी घेरे रहती थी। पर फिर एक दिन कुछ बदल गया।

एक दिन माता जी बोलीं:

"मैं एक महीने के लिए मायके जाउंगी, परिवार के साथ बैठकर थोड़ा समय बिताऊँगीं।"
पिता ने बस इतना ही कहा:
"ठीक है।"

लड़का बोला:
"पिताजी, मेरी पढ़ाई में बहुत परेशानी चल रही है।"

पिता बोले:
"कोई बात नहीं बेटा, सुधार हो जाएगा। नहीं हुआ तो साल दोहराना पड़ेगा, लेकिन फीस तुम खुद दोगे।"

बेटी ने कहा:
"पिताजी कार का एक्सीडेंट हो गया।"

पिता बोले :
"कोई बात नहीं, गाड़ी मैकेनिक को दिखा दो नवनीत, खर्चा देखो और खुद व्यवस्था करो। जब तक ठीक नहीं होती, बस या मेट्रो से चलो।"

बहन बोली:
"भैया , मैं कुछ महीने आपके घर रहना चाहती हूँ।"

पिता ने सहजता से कहा:
"ठीक है, बैठक में रह लो। अलमारी में रजाई-कंबल हैं, निकाल लो।"

हम सब अचंभित थे — ये वही पिता हैं?
हमें लगा पिताजी किसी डॉक्टर से मिलकर आये हैं और शायद कोई दवा ले रहे हैं — 
जैसे "अब मुझे फ़र्क नहीं पड़ता" नाम की कोई चमत्कारी गोली!

हमने एक पारिवारिक सभा बुलाई ताकि पिताजी को “बचाया” जा सके।

लेकिन पिताजी ने बहुत शांति से सबको एकत्र किया और कहा:
"बहुत वर्षों तक मैं यही सोचता रहा कि मेरे दुख, मेरी चिंता, मेरी रातों की नींद और मेरे अशांत मन से शायद तुम लोगों की समस्याएँ हल हो जाएँगी। लेकिन धीरे-धीरे समझ आया — यह मेरा मोह था।

हर आत्मा अपने कर्मों की स्वामिनी है। किसी का सुख-दुख, उसका कर्तव्य, उसका निर्णय — सब उसका अपना है। मैं पिता हूँ, मशीन नहीं और ईश्वर भी नहीं।

अब मैंने यह स्वीकार किया है — मेरा धर्म है अपना मन शांत रखना, और हर किसी को उनके कर्मों के अनुसार जीने देना।

मैंने समय-समय पर ध्यान, सत्संग, उपनिषद, भगवद गीता, और आत्मचिंतन के माध्यम से जाना है — जीवन में आत्मनियंत्रण सबसे बड़ा तप है।

अब मैं सिर्फ प्रार्थना कर सकता हूँ, शुभचिंतन कर सकता हूँ, प्रेम दे सकता हूँ — लेकिन मैं किसी की ज़िंदगी नहीं जी सकता।

अगर कोई मुझसे मार्गदर्शन चाहे, मैं दूँगा, पर चलना उसे ही होगा। निर्णय उसके हैं, फल भी उसी को भोगने होंगे।

आज से मैं किसी का बोझ नहीं उठाऊँगा — न मानसिक, न भावनात्मक, न कर्मों का।

आज से सब मेरे लिए आत्मनिर्भर और जिम्मेदार व्यक्ति हैं।

सब चुप हो गए।

उसी दिन से घर में परिवर्तन आया। सबने अपने कर्म का दायित्व अपने ऊपर लिया।

हममें से कई, विशेषकर माता-पिता, यह सोचते हैं कि हमारा कर्तव्य है सबकी चिंता करना, सबका भार उठाना। लेकिन यही मोह हमें थका देता है, और दूसरों को निर्भर बना देता है।

सच्ची करुणा तब होती है जब हम दूसरों को उनके रास्ते पर चलने दें, और आत्मबल के लिए प्रोत्साहित करें।

हम धरती पर दूसरों के जीवन की नाव खेने नहीं आए हैं, केवल उन्हें उनकी पतवार पकड़ने की प्रेरणा देने आए हैं।

*सदैव प्रसन्न रहिये।* 
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।* 
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हे मेरे मालिक सिरजनहार

थोड़ी - थोड़ी देर में अंतर्मन में कहते रहें - हे दाता ! हे मेरे मालिक सिरजनहार ! मैं आपको भूलूँ नहीं । मैं सत् करतार का हूँ और केवल सत् करतार ही मेरे अपने हैं । इस अपने पन के समान कोई भी योग्यता, पात्रता, अधिकारिता आदि कुछ भी नहीं है । यह सम्पूर्ण साधनों का सार है, बहुत वर्षों का काम मिनटों में हो जाये ।