मुक्ती

मुक्ती

सतगुरु साहिब के फुरमाए अनुसार जिन साधों को शब्द रूपी खजाना प्राप्त हो गया उन्हे वीरभान जी ने सायदी दे दी और सतगुर साहिब ने मुक्ती का पट्टा लिख दिया!!

जिन साधों को मुक्ती मिल गई उन्हे शरीर रहते ही कर्मो का दंड भरना पड़ा, लेकिन दंड भरने में उन्हें खुशी हुई ,क्योंकी उन्हे ज्ञान हो गया दोबारा आवागमन में नही आना होगा, जिन्हे शरीर रहते ही मुक्ती प्राप्त हो जाति है उन्हे शरीर रहने तक पिछले कर्मो का दंड भरना पड़ता है !!

शब्द का ज्ञान होने से" मैं " 
छूट जाति है, उसके बाद काम, क्रोध, लोभ, अंहकार प्रवेश कर ही नहीं सकते!!

पड जी ने कहा है, वोह सतबादी धन्य है, जिन्हे ज्ञान हो गया कि वो शरीर नही ब्रह्म है !!