हे दाता धनी ! हे मेरे मालिक सच्चे गुरु !! मैं आपको भूलूँ नहीं ! हे मांड के धनि ! हे मेरे सिरजनहार !
एक शक्ति शाली महामंत्र है । इसको अंतर्मन में समझ करके ह्रदय से जाप करने से चिंता, अशांति, आफत सब मिट जाती है ।
*बिन्दु में सिन्धु*
जो सर्वथा सत् करतार के शरणागत हो जाता है, उसका सब कुछ बदल जाता है । वह संसारी आदमी नहीं रहता । वह संसार में प्रचलित अनन्य जात - पांतो के अंतर्गत नहीं रहता । वह संसार से ऊँचा उठ जाता है । उसकी वाणी विलक्षण हो जाती है । उसका जीवन विलक्षण हो जाता है । एक सत् करतार के शरणागत होते ही उसके अंदर सत् करतार के माफक का भाव अवतरित हो जाता है ।