लोग मन को रोकने के लिए

साधक - संजीवनी

 मनुष्य को कभी भी ऐसा नहीं मानना चाहिये कि पुराने पापों के कारण मेरे से आध्यात्मिक पठन पाठन नहीं हो रहा है; क्योंकि पुराने पाप केवल प्रतिकूल परिस्थिति रूप फल देने के लिये होते हैं, आध्यात्मिक पठन पाठन में बाधा देने के लिये नहीं । प्रतिकूल *साधक - संजीवनी* 

 *साधक - संजीवनी* 

 जिनके भी ब्रह्म (आत्मा) का इस पांच तत्व की काया जिसको हम सब प्रायः शरीर की संज्ञा देते है इससे बिछोड होता है, वे अपने - अपने कर्मों के अनुसार ही ऊँच - नीच गतियों में जाते हैं, वे चाहे दिन में शरीर त्यागे, चाहे रात में; चाहे शुक्ल पक्ष में शरीर त्यागे, चाहे कृष्ण पक्ष में; चाहे उत्तरायण में शरीर त्यागे, चाहे दक्षिणायन में - इसका कोई नियम नहीं है ।
*कल्याण* *कारी* *प्रवचन* 

लोग मन को रोकने के लिए

बहुत मेहनत करते है, पर मन रुकता नहीं। मन को रोकना नहीं है। मन को न रोकना है और न चलाना है। मन जैसा है, वैसा ही छोड़ दो, उसकी उपेक्षा कर दो, उदासीन हो जाओ। फिर सकल्प-विकल्प आप से आप मिट जायेंगे। वे तो आप से आप हो मिट रहे हैं। जान वूझकर उनको मिटाने की आफत क्यो मोल लेते हो उनको मिटाने की चेष्टा करना ही उनको सन्ता देना है।