पूर्णिमा/ पुनम का महत्व:

पूर्णिमा/  पुनम का महत्व:  चौदश लगन पूनम सुखदाई! चार पहर को जाग्रण कीजै,  घर में बैठ सत्तनाम जपीजै ! चार पहर बन नही पावै,  पहर माही घड़ी ठहरावै । मतलब 3 घन्टे सुमरण is compulsory मालिक दाता जी की मेहर से करना है    अन्यथा पूनम का फल नहीं मिलैगा । निष्फलता धरई । पूनम दिन मैं भोजन नही किजै सत्त सुमरण ह्रदय धर लिजै । चार पहर बित जाए तब पांचवॉं पहर चन्द्र निकलना या लगन का आवै । चन्द्र लगन में पूनम किजै,  सूर्य निकलने पर भोजन किजै । पूनो के बाद खीर और खान्ढ का भोजन लिजै । लो लीन भयै सत्त सुमरण किजै । यानी चौदश की सुबह सूरज निकलने के बाद से 12 घन्टे के बाद  तथा अगले दिन  सूरज  के निकलने से पहले  पूनम का कार्य करना चाहिए । चोदश एवं पूर्णमासी के बिच की जो रात्रि है वह हमारे लिए very very important हैं उसी में कम से कम एक घड़ी का सुमरण करना चाहिए या बन पावै तो पुरी रात्रि यिनी चार पहर का सुमरण करना चाहिए,  सुमरण सुरत से और मालिक की मेहर से करना चाहिए । एक बहुत बुजुर्ग साध  ने जिक्र किया है कि पहले भन्ड़ारे में पुनौ का कार्य रात्रि में ही होता था । बाकी महीनों में पूनम का कार्य during the चन्द्र लगन में ही होता था ।  यानी चौदश एवं  पूर्णमासी की रात्रि को ।  फरूखाबाद में अव्वल एवं दोयम के विवाद के समय court ने verdict दी थी की अव्वल पार्टी सुबह तथा दोयम पार्टी रात्रि को ऊँची बैठक में पुनौ का कार्य करेंगें । लेकिन अब प्रस्थित अलग है हम विचार करें की पूनम का कार्य सतगुरू कबीर साहेब जी ने एवं बाबा उदादास जी ने समझाया था उसके मूजब कर रहे या खुद की सुविधा अनुसार । कबीर साहेब जी ने स्पष्ट किया है कि एक पूनौ यदि  सम्पूर्ण  निष्ठा से हम परस लै जम की मार सै 100% बच जाएगें ।  छोटी बूद्दी में जो  विचार  सो रख दिया,  कोई बात बेजोग लिखि गई हो तो  it humble request to साध संगत सुधार करें । most important thing in whole scenario is   कम से कम 3  घन्टे का सुमरण निरत सुरत एवं सम्पूर्ण समर्पण के साथ करना चाहिए ।।