ध्यान करने से मन की एकाग्रता बढती है,

ध्यान करने से मन की एकाग्रता बढती है, मन की एकाग्रता बढने से अंत:करण  शुद्ध होता है, अंत:करण  शुद्ध होने से मन के अंदर जो अंधकार रूपी  अग्यान भरा है वह निकलने  लगता है और प्रकाश रूपी ग्यान भरता है ।
ध्यानकी एकाग्रता जितना  बढती जाती है मन, बुद्धि, अहम् में उतना निर्मलता  आती जाती है । निर्मलता आने के कारण बुद्धि सुक्छ्म होती है, बुद्धि का विकास होता है । बुद्धि की यही सुक्छ्मता और बढती है तब ग्यान का रूप धारण कर लेती  है । ग्यान अंत:करण  में उठने वाले सभी विकारों  को दर्शाता है तब मनुष्य अपने गुण और अवगुण का पहचान करने योग्य बन  पाता है ।
गुरू पर नजरें  टिकाये  अपने अवगुंणो का त्याग  करता हुआ साधक आगे बढता है, एकदिन वह आता है जब वह साधक अपने अंत:करण  के सारे   विकारों का, अग्यान का, अंधकार का, सारी  ईच्छाओं का त्याग करता हुआ उस स्थान या उस अवस्था में पहुंचता  है जहां पुर्ण ग्यान है, पुर्ण प्रकाश है, सारी ईच्छाओं से मुक्ति है,
लेकिन गुरू कृपा के बिना न ध्यान संभव है न अंत:करण  की निर्मलता संभव है न ही त्याग संभव है ।
गुरू की कृपा पहले ही दिन से साधक का निर्माण करने का कार्य शुरू कर देती है और एक दिन उस अवस्था मे ले पहुंचती  है जहां पुंर्ण ग्यान का प्रकाश है । जहां गुरू और शिष्य दोनों  एक हो जाते है । वही पुर्णता की अवस्था है ।