जन्म है नाव में बैठना!

जन्म है नाव में बैठना!
मृत्यु है नाव से उतर जाना, बीच में सब मित्रताएं हैं, शत्रुताएं हैं। हम कितना फैलाव कर लेते है, हम कितना पसारा कर लेते है, कितनी आसक्तियां, कितने मोह, किस किस भांति हम एक दूसरे से बंध जाते है, एक दूसरे को बांध लेते है! कितने बंधन! कितना कष्ट पाते हैं उन बंधनों से, और यह जानते हुए कि मौत आती होगी! यह लगी नाव किनारे, यह लगी नाव किनारे! और उतर जाएंगे बटोही! न जन्म के पहले उनसे हमारा कुछ संबंध था, न मृत्यु के बाद कोई संबंध रह जाएगा। न हम उन्हें पहले जानते थे नाव में बैठने के पहले, नाव से उतरने के बाद, न फिर कभी जानेंगे। मगर थोड़ी देर का! घड़ी भर का साथ, और हमने कितना संसार रचा लिया !!

~ओशो