दुःख चिंता का कारण

दुःख-चिन्ताका कारण वस्तुओंका अभाव नहीं है, प्रत्युत मूर्खता है । यह मूर्खता सत्संगसे मिटती है ।
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मनुष्य ज्यों-ज्यों अपने शरीरकी चिन्ता छोड़ता है, त्यों-त्यों उसके शरीरकी चिन्ता संसार करने लगता है ।
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भगवान्‌के भरोसे रहनेपर किसी प्रकारकी चिन्ता टिक ही नहीं सकती ।
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जिसे नहीं करना चाहिये, उसे करनेसे और जिसे करना चाहिये, उसे नहीं करनेसे ही चिन्ता और भय होते हैं ।
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भगवान् हमसे ज्यादा जानते हैं, हमसे ज्यादा समर्थ हैं और हमसे ज्यादा दयालु हैं, फिर हम चिन्ता क्यों करें ?