चौकी किसी स्थान के लिए नही बल्कि चौकसी के लिए आया है

*चौकी रहियौ सावधान,
                    कोई मुसन न पाया*
निर्वान ग्यान में चौकी, किसी स्थान के लिये नहीं, बल्कि चौकसी के लिये आया है।
संत कह रहे हैं कि,
सावधानी पूर्वक, चौकसी करने बाले को, कभी भी कोई लूट नहीं सकता।
"पंड कहैं चौकस रखबाला, तौ खिड़ै नहीं तिल ऐती"।
जिस किसान ने, अपने खेत की चौकसी पूर्वक देखभाल की, उसी किसान का खेत पूरी तरह लहलहा उठा।
उसी के खेत में, कोई स्थान रिक्त नहीं रहा।
ठीक उसी प्रकार जिस साध नें अपना तन मन अर्पण करके, पूरे पूरे सतगुर साहिब के हुकमों को माना, उन्हीं सन्तों की एक भी सांस खाली नहीं गयी।
"भगत भेद पामैं परमानी"।
जिसने गुरू के पूरे हुकमों को माना, वही भगत भेद को पा सका,
यानी वही समझ सका कि, भक्ति कैसे की जाये।
"चौंकी मैं निगेवानी ऐसी, पलह नहीं बदलाना"।
ऐसी चौकसी कि, कोई भी पल बिना नाम के न गुजरे, हर आती जाती सांस पर बस एक ही नाम हो,
'सत्तअबगत', 'सत्तअबगत', 'सत्तअबगत'।
"पल पल मैं रहियौ सावधान, अबगत फुरमाया"।
हर पल, अहंकार की मार से बचकर, सुचेती और सावधानी पूर्वक, 'सत्त' को समझने, और प्रेम करने का,
सृष्टिकर्त्ता अबगत आप का फुरमान (हुकम), सतगुर साहिब नें संतों को दिया।
सत्तनाम।(राजमुकट साध)।